Thursday, June 23, 2011

प्रिय पाठकों

प्रिय पाठकों,
आप सब परेशान हो रहे होंगे की मैं कहाँ व्यस्त हूँ इनदिनों,काफी प्रियजनों ने अनुमान भी लगा लिया होगा... माता जी का स्वर्गवास हो गया है! पिछले महीने १९ मई को उनका जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष समाप्त हुआ, और जीत उनकी ही हुई!!! आप सब सोच रहे होंगे कि जीवन स्वरुप धूप पर मृत्यु का कफ़न पड़ने के बाद भी कोई कैसे जीत सकता है| जैसा कि मैंने अपनी पोस्ट डर के आगे जीत है!!!    मैंने उल्लेख किया था, उनका संघर्ष अपने सारे फ़र्ज़ पूरे करने का था| यूं तो हमसभी को कभी न कभी जाना ही है, परन्तु बहुत से लोग इस जीवन को व्यर्थ नहीं जाने देते, हमेशा कुछ न कुछ योगदान समाज में देते रहते हैं या फिर यथासंभव प्रयास करते रहते हैं|  माँ के साथ यह सब और भी मुश्किल था चूँकि वह "सिंगल मदर" थीं|

हे भगवान! पहली बार उन्हें "थीं" लिखा मैंने...
सच में, सच को सुनना और सच को मान लेने में बहुत फर्क है| एक महीने से ज़यादा हो गया है उन्हें गए, लेकिन आज तक उनकी मौजूदगी का एहसास हमेशा रहता है| सफ़र करते वक़्त, खाते पीते, लिखते, फोन पर बात करते वक़्त, सुबह दिन शुरू करने से पहले और अक्सर सोने से पहले उनकी हर एक हरक़त, हरेक भाव, हरेक स्पर्श ज़ेहन में घूमता रहता है| पता नहीं क्यों रोना नहीं आता बस उन्हें याद करना और करते रहना अच्छा लगता है, फिर जब महसूस होने लगता है की अब उनतक पहुँच नहीं सकती तो आँखे नम हो आती हैं| पता है, उन्होंने ही मुझे प्रकति और विज्ञान को जोड़ना सिखाया था| हर एक चीज़ में वह तर्क ढूँढती थीं| ज्ञान की बहुत चाह थी उनमें, हमेशा खाना खाते वक़्त अखबार का कोई टुकड़ा या पत्रिका, या फिर कुछ भी नामिले तो हम लोगों की ही कोई पाठ्य पुस्तक उठा कर पढ़ती रहती थीं| कोई भी कागज़ उनके हाथ के नीचे से बिना पढ़े नहीं जाता था| गीतों का कोई  शौक नहीं था उन्हें पर फिल्में अक्सर पसंद करती थीं, शायद वह फिल्में उन्हें पिताजी के साथ बिताये कुछ लम्हे याद दिला देती थीं|

बहुत सादी थीं मेरी माँ, बिलकुल तस्वीरों जैसी थी, सुन्दर नाक-नक्श, लम्बा कद, कमर से नीचे काले-घने लम्बे बाल,  सुघड़, मुस्कान तो उनकी सबसे-सबसे-सबसे अच्छी थी| आंखें थोड़ी  छोटी थीं पर उनकी चमक उनके ढ़ेर सारे संस्कारों और मज़बूत व्यक्तिव  का परिचायक थी| बड़ी लाल बिंदी उनके व्यक्तिव को और निखार देती थी| बहुत सुन्दर, बिलकुल भारतीय नारी सी गरिमा थी उनकी| साड़ी बहुत भाती थी उन्हें पर पिताजी के बाद काफी कम करदिया था साड़ी पहनना उन्होंने| आधुनिता और भारतीयता का अच्छा संगम था उनके वक्तित्व में, आफ़िस में हमेशा नया सीखने की ललक थी उन्हें और लंच टाइम में वह और उनकी सह्कर्मियाँ एक दुसरे को भजन लिखवाती थीं| ऐसा कोई व्रत नहीं था जो उन्होंने न किया हो, और पूजा अर्चना में सदैव नियम रखती थीं, यहाँ तक की अपने निधन से कुछ दिन पहले जबतक वह चल फिर रही थीं, वह पुरानी दिल्ली, अपने गुरु महाराज की राम नवमी की संगत में भी हमसे लड़कर गयी थीं|
हर काम भगवान को समर्पित करदेना और हर काम उनके लिए करना उनके संस्कारों में से एक था| भोजन को सदैव प्रसाद समझ कर बनाना चाहिए और पहले निवाले से पहले भगवान् को "रोटी" के लिए आभार व्यक्त करना चाहिए मैंने उन्ही से सीखा है| हर माँ की तरह वह भी अपने दुःख बहुत कम बांटती थी, और ज़रुरत से ज्यादा प्यार देती थीं| अभी तक तो उनके लिए लिखने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी और अब जब कहना शुरू किया है तो शब्द कम पड़ रहे हैं| देखिये ना, जो बात कह रही थी उसे छोड़ कर कहाँ तक आ गयी हूँ| लेखन भी भूल गयी हूँ शायद अब...

माँ की जीत इसलिए कह रही थी चूँकि उन्होंने अपने संघर्ष, बलिदान, त्याग, आशीर्वाद और ढ़ेर सारे प्रेम से पिताजी जी को दिया अपना आखरी फ़र्ज़ भी पूरा किया|
जी हाँ, आप सब की शुभकामनाओं और सप्रेम आशीर्वाद से हमने भाई की शादी करवा दी थी| उनकी मृत्यु से तीन दिन पहले ही विवाह संपन्न हुआ| वह विवाह में भाग तो नहीं ले पायीं परन्तु वरवधू को आशीर्वाद उन्होंने ICU में ही दिया था| इसबात की हमारे पूरे परिवार को तसल्ली है की शरीर त्यागने से पहले वह पूरी तरह से निश्चिन्त थीं|

मैं आपसब सहभागियों का आभार व्यक्त करती हूँ, जिन्होंने ब्लॉग जगत का हिस्सा होने के नाते मुझे और मेरे परिवार को कैंसर से संघर्ष के दिनों में हौसला बढाया| मन से निकली हर दुआ में ताक़त होती है, आप सबका प्यार इस बात का सबूत है| माँ की अंतिम  इच्छा को पूर्ण करवाने के लिए आपने जो शुभकामनायें, सहयोग और आशीर्वाद दिए, मैं उसके लिए नमन करती हूँ|

हार्दिक धन्यवाद!
कविता