Tuesday, April 19, 2011

यादें



कल शाम मेरी अज़ीज़ ने मुझे एक रचना मेल की, बाकि कुछ नहीं कहा उसने... सिर्फ लिखा था "कविता पढो ज़रा" :] मुझे बिलकुल उम्मीद नहीं थी कि उसके बाकि गुणों में से एक कविता लेखन भी है| जैसे-जैसे पढ़ती गयी, मेरी मुस्कान उसके आसुओं से सिकुड़ती जा रही थी, कुछ वक़्त  पहले उसने कुछ दर्द बँटा तो था, पर जैसे की उसकी फितरत है, वह सिर्फ और सिर्फ खनखनाती हुई अपनी हंसी बाँटती है बाकि बचे अपने ग़म, अपने ही आँचल में बाँधे रहती है|
दोस्तों आज की यह पोस्ट मेरी प्रिय मित्र "ऋचा" ने लिखी है, उसके द्वारा लिखी यह पहली पोस्ट है|

हिचकियों से एक बात का पता चलता है,
कि कोई हमें याद तो करता है, बात न करे तो क्या हुआ,
कोई आज भी हम पर कुछ लम्हे बरबाद तो करता है
ज़िंदगी हमेशा पाने के लिए नही होती, हर बात समझाने के लिए नही होती,
याद तो अक्सर आती है आप की,
लकिन हर याद जताने के लिए नही होती महफिल न सही तन्हाई तो मिलती है,
मिलन न सही जुदाई तो मिलती है,
कौन कहता है मोहब्बत में कुछ नही मिलता,
वफ़ा न सही बेवफाई तो मिलती है
कितनी जल्दी ये मुलाक़ात गुज़र जाती है
प्यास बुझती नही, बरसात गुज़र जाती है
अपनी यादों से कहो यहाँ ही  आया न करे
नींद आती ही नही , रात गुज़र जाती है  !
उम्र की राह मे ,रस्ते भी बदल जाते हैं,
वक्त की आंधी में, इन्सान बदल जाते हैं,
सोचते हैं कि तुम्हें याद इतना भी न करें,
याद ऐसी, कि सारी रात गुजर जाती है !
लेकिन आंखें बंद करते ही इरादे बदल जाते हैं कभी कभी दिल उदास होता है
हल्का हल्का सा आँखों को एहसास होता है छलकती है मेरी भी आँखों से नमी
जब तुम्हारे दूर होने का एहसास होता है|

Friday, April 8, 2011

राष्ट्रभक्ति


"हम वर्ल्ड कप जीत जाये", "हमारा भारत जीत गया", "भारत की विजय गाथा", "टीम इंडिया ने भारत को गौरान्वित किया"... यह सब और इनके जैसे सैकड़ो हेड लेंस ने, हमें गौरान्वित किया, हमें हर्षौल्लाहित किया, हममे से कई लोग रो भी पड़े थे, खूब नाचे-गाये और हर भारतीय ने अपने-अपने तरीके से अपना उत्साह और ख़ुशी ज़ाहिर की, आज भी कर रहे हैं| वह सब भाव सच्चे थे, हम सभी का अपने देश, अपने राष्ट्र, अपने भारत के प्रति प्रेम और गर्व था; पर ना  जाने  क्यों  मेरे मन  से दोपहर की घटना नहीं निकल पा रही थी, मैं इतनी बड़ी ख़ुशी में भी कई प्रश्नचिन्हों को अपने आस-पास मंडराते हुए देख रही थी|

सोच रही थी की सब लोग खुश हैं तो इस गंभीर विषय को कोई सुनेगाभी या बस यों ही लापरवाही में उड़ा देंगे? आप सब लोगों का मन नहीं ख़राब करना चाहती थी इसी लिए पोस्ट लिखने में इतने दिन लगा दिए...

बात शनिवार की है, सुबह से ही मैं, भाई और मामाजी हॉस्पिटल में, डॉ. से मिलने का इंतज़ार कर रहे थे| समय निर्धारित होने के बावजूद हमें दोपहर तक इंतजार करना पड़ा| खैर, वक्त गुज़र रहा था और हॉस्पिटल में भीड़ बढ़ रही थी| राजीव गाँधी में हर एक माले पर संयुक्त बैठक है, और बड़ी-बड़ी टीवी स्क्रीन पर लोग कभी समाचार तो कभी हालत का जायजा लेते नज़र आते हैं| उस दिन सभी लोग बेसब्री से मैच शुरू होने का इंतज़ार कर रहे थे, मैं लॉबी की बजाये डॉ के कमरे के बाहर ही बैठी थी... मैच शुरू हुआ, मारे ख़ुशी के मैं फटाफट बाहर आई; उस समय राष्ट्र-गान चल रहा था, मैं भी रुक कर गाने लगी... राष्ट्र-गान ख़त्म हुआ, जब निगाह स्क्रीन से हटी तो देख कर आहात हो गई कि एक भी सज्जन ना तो खड़ा ही हुआ था और ना ही किसी ने राष्ट्रगान गाया| सब के सब मुझे देख रहे थे, मानो मैंने कोई अपराध कर दिया हो... हद तो तब हो गई जब मेरा भाई भी बैठा रहा और जब मैं उसके पास जा कर बैठी तो मुझे डांटते  हुए बोला कि "तू ज़यादा देशभक्त है क्या? क्या ज़रूरत थी खड़े होने कि???"

इसके बाद मुझे काटो तो खून नहीं, समझ नहीं आ रहा था कि, किस किस से जा कर पूछूँ देशभक्ति  का अर्थ? क्यों कोई भी खड़ा नहीं हुआ था? उन सब को किसबात से शर्मिंदगी थी? अपने आप से या अपने देश से?

आप ही बताईये कि क्या हमारे राष्ट्र ने हमें इतना भी उत्साह और प्रेम नहीं दिया जिसके बदले में हम उसे सम्मान दे सकें? गर्व से राष्ट्र-गान गा सकें? जब कप जीत लिया तो दिल खोल के देशप्रेम ज़ाहिर किया, और रोज़? क्या हम अपने देश को हर रोज़ सम्मान नहीं दे सकते? क्या हमें स्वतंत्रता और गणतंत्र दिवस का ही इंतज़ार करना चाहिए? या फिर वर्ल्ड कप और कॉम्मनवेअल्थ जीतने का?