मेरे आंगन में एक गुलमोहर लगा दो...
जिस से बातें करते-करते , वक़्त के हर लम्हे को मैं चुरा लूं,
शाम-सवेरे एक टक देखूं, जिसके दरश से मैं किस्सा बना लूं,
मेरे आंगन में एक गुलमोहर लगा दो...
गीले-गीले मौसम मैं फिर, जिसके रंग में, मैं तन यह रंगालूँ,
हंसती-गिरती पंखुड़ियों से मैं, अपना घर-बार सजा लूं,
मेरे आंगन में एक गुलमोहर लगा दो...
भोर की लालिमा में उगते, गुमोहर में, मैं रवि का भ्रम ना कहीं पा लूं,
चेहचाहती हुई चिड़िया जब बैठे उस पर, तो बसंत गीत मैं उस संग गा लूं,
मेरे आंगन में एक गुलमोहर लगा दो...
भरी दोपहरी वह पंख झेलता, उस के चरणों में बैठी मैं, ज़िन्दगी से राहत पा लूं ,
अपनी नारंगी कलियों का जो करे बिछोना, उस संग कैसे ना प्रीत लगा लूं,
मेरे आंगन में एक गुलमोहर लगा दो...
कुछ लाल, कुछ गुलाबी, कुछ नारंगी सपने, उसके फूलों जैसे बना लूं,
लगे सूखने जब पत्ते वह भूरे, उनको अपनी याद बना किताबून के बीच बसालूँ,
मेरे आंगन में एक गुलमोहर लगा दो...
बहार लाऊं मैं फिर से उसपर, उसके संग एक उम्र बिता लूं,
झूमे गुलमोहर, तो थिरकूँ मैं भी, उसकी ताल में ताल मिला लूं,
मेरे आंगन में एक गुलमोहर लगा दो...
18 comments:
मेरे आंगन में एक गुलमोहर लगा दो..
गुलमोहर से इतनी उम्मीद वाह भाव बहुत सुन्दर , बधाई
शायद पूरा मानव जीवन, सपनो की इर्द गिर्द ही रहता है ! यह सपने और अतृप्त इच्छाएं ही भावनाओं और व्यक्तित्व को जीवंत बनाए रखने में सहायक होती हैं ! हार्दिक शुभकामनायें , आपके आँगन में गुलमोहर के रंग बिरंगे फूल बरसें ....
"जो आँगन में
गुलमोहर लगाने की सोचता
गुलमोहर के साथ थिरकना चाहता
ताल से ताल मिला सकता
किसी फूल सा दिल रखता होगा
निरंतर फूल सा महकता होगा"
बहुत ख़ूबसूरती से विचारों का
अहसास कराया आपने
बहुत सुंदर बिम्ब लेकर रची कविता ...बेहतरीन
खूबसुरत प्रस्तुति... स्वागत...
आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा , हिंदी ब्लॉग लेखन को बढ़ावा देने के लिए किया जा रहा आपका प्रयास सार्थक है. निश्चित रूप से आप हिंदी लेखन को नया आयाम देंगे.
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भारतीय ब्लॉग लेखक मंच
डंके की चोट पर
वाह कवि हृदय की बात ही कुछ और होती है
nice
बहुत सुन्दर काव्य Creation.
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आपके लिए एक जरूरी आमंत्रण @ उल्टा तीर (सिर्फ़ दो दिन शेष!)
बहुत खूबसूरत तरीक़े से अपनी बात कही है आपने !
कविता की रूह और पैरहन दोनों लाज़वाल हैं...
(सोच रहा हूँ गुलमोहर का पेड़ लगा दूँ आँगन में)
मेरे आंगन में एक गुलमोहर लगा दो...
जिस से बातें करते-करते , वक़्त के हर लम्हे को मैं चुरा लूं,
शाम-सवेरे एक टक देखूं, जिसके दरश से मैं किस्सा बना लूं,
मेरे आंगन में एक गुलमोहर लगा दो...
bilkul hum jarur aapki manokamna puri karenge....
sunder rachna ke liye bahut bahut badhai.........
बहुत ही खुबसूरत
जारी रखे
Gulmohar ke phool mujhe bhii bahut pyare lagte hain... aur jab wo batein karne ki sthiti mein a a jayen to fir bat kuchh aur ho jaati hai...
Behad khoobsurat...
badhayee
गुलमोहर जिसे देखने में एक रंग के फूल दिखेंगे, आपकी कविता पढ़ते हुये उसके कई रंग दिखे। यह अच्छा लगा। आभार..!
बहुत अच्छी लगी आपकी कविता.
सादर
गुलमोहर से एक उम्मीद का नाता ..अच्छी प्रस्तुति
GULMOHAR se ummid ka daaman jodker bahu achche bhav liye shaandaar rachanaa.badhaai sweekaren.
please visit my blog.thanks.
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