Thursday, May 14, 2015

Foot Prints without Feet


Young shoots grow by absorbing nutrients from the earth, In a same way the child are nurtured by her mother  and this journey begins from our day of conception. Yes, today I would like to share my views about Motherhood and Pregnancy.
We all are thankful to God and also our child/children that they gave us this opportunity and experience to be one with nature and became a part of HIS creation. Each day of pregnancy is beautiful and has come up with new challenges. The initial two trimesters are known to be happy period and they are competitively less risky. Off course, there are many physical changes, but most of the mothers are worried about their “Stretch Marks”. I also applied 2-3 creams suggested by my Gynec, but nothing worked out much. After the birth of my child it turned  more prominent and because of that I have to stop wearing low waist dresses. I was disappointed and Sad. Just like a Fairy-tale, one day I read the concept of “changing Poison into medicine” from Nichiren Daishonin Buddhism, their he mentioned about how do we transform our “ pain into pleasure “. That was the knocking moment of my life and I’ve started looking that permanent change into a positive aspect. I relate the Strach marks with the Foot prints of my baby Avighna’s feet.
As every mother misses that beautiful period, when her baby was the part of her own body and she was connected with Mother Nature directly. I advise all the mothers and To-be mothers, pl don’t feel bad about your body and Marks. They are actually the Impression of your loved ones and its your love towards Almighty. Last but not the least, I pay my heartiest gratitude to all the mothers. I would like to end my exp with the note of Lotus Sutra of Buddhism:




“Prayer and Mother is the effort to align the gears of our life with the movement of the Universe”.

Tuesday, October 18, 2011

कशिश

इस करवा चौथ पर बहुत कुछ कहना चाहती थी उनसे पर... दिल की बात आँखों तक ही रह गयी आप सब से बांटना चाहती हूँ शायद पसंद आये...




वो रौनक तेरे चेहरे की,
वो नज़ाकत तेरे लफ़्ज़ों की,
तमन्नाओं और आरज़ूओं में डूबी तेरे फ़लसफ़े की,
कशिश है तेरे जज़्बातों की...

वो आँखों में सादगी,
वो बातों में आग सी,
वो तीर सी मीठी मुस्कराहट,
कशिश है तेरे ख़्वाबों की...

वो चौड़ा सीना,
वो जिस्म मरस्स्म भीगा पसीना,
वो कलाईओं में दम,
कशिश है तेरे एहसास की...

वो डूबती हुई सोच,
वो कुछ पाने की खोज,
ज़माने को पाकीज़ा बनाने की चाह,
कशिश है तेरी फितरत की...

Tuesday, October 11, 2011

सामाजिक अपराध


साथियों, आज सुबह एक और घटना ने हतोत्साहित कर दिया उत्तर प्रदेश के लखीम पुर खेरी जिले में, निम्नवर्गीय ४५ वर्ष की महिला या और अच्छे से कहूं तो दलित महिला को चंद्वापुर गावं में नग्न करके घुमाया गया

राम प्यारी और उसके पति अपनी तलाकशुदा बेटी जयंती के साथ उत्तर प्रदेश में रहते थे जयंती अपने तलाक के दो वर्ष बाद मन्नू नाम के युवक के साथ, सामाजिक डर से भाग गई इस घटना पर गावं के एक "मान्य" दलित परिवार ने जयंती की माँ राम प्यारी को अगवा कर अपने घर रा भर प्रतिपादित किया और जब पूछने पर राम प्यारी ने कहा की उसे नहीं पता की उसकी बेटी कहाँ गयी है तो इस परिवार के मुखिया ने राम प्यारी को निवस्त्र कर पूरे गाँव में बेल्टों से मारते-मारते घुमाया ५०० की आबादी वाले इस गाँव में, एक की भी हिम्मत नहीं हुई की उस महिला को (जो की अधिकतर की माँ की उम्र की होंगी) सहायता कर प्रदान करसके या इस घटना का विरोध करे

हालाँकि SP अमित चन्द्रा ने इस घटना की पुष्टि की है और कहा है कि यह एक सोचा-समझा अपराध है, परन्तु प्रदेश कि पुलिस और उच्च ताकतें कितना सहयोग देती हैं यह देखना है मैं आपको बता दूं कि यह वही थाना है जहां कुछ ही दिन पहले एक युवती के साथ बलात्कार हुआ था और उसे जला कर मार देने कि कोशिश पुलिस ने ही कि थी अब आप अनुमान लगा ही सकते हैं कि राजनैतिक ताकतें/ या कोई भी और उच्च दबाव अपराधियों को किस सीमा तक सहयोग देती हैं, जो उनका मनोबल इतना अधिक है

इस घटना के कई सामाजिक पहलू हैं जिनके ख़िलाफ़ आम जनता को आवाज़ उठानी ही होगी, जैसे कि:-


क्या दलित होना आज भी अपराध है?
क्या सुखी ना रहने परभी एक महिला को यह अधिकार नहीं है कि वह तलाक ले?
क्या तलाक लेना किसी के लिए भी अपराध है, जबकि यह प्रावधान संविधानिक व न्यायिक रूप से अपने जीवन को बचाने और आत्मसम्मान से जीने के लिए है?
क्या तलाक जैसे मुद्दों में अपने बच्चों या परिवार का साथ देना ग़लत है?
क्या तलाक होने के बाद प्यार करना ग़लत है?
क्या एक तलाकशुदा महिला या पुरुष को सामजिक तौर से स्वीकार करना ग़लत है? जो उस युवक को अपना गाँव छोड़ कर भागना पड़ा
क्या बिना पुलिस और राजनैतिक सहयोग के इतने बड़े अपराध किये जा सकते हैं?
यदि हम अन्याय होता हुआ देखें तो कौन सी मजबूरी हमें उसका विरोध करने से रोकती है?
क्या हम सबका ज़मीर मर गया है?
अंतिम सवाल, क्या हम आज़ाद भारत के नागरिक है?

दोस्तों, मेरे ज़ेहन में इस घटना को लेकर उपरोक्त सवाल उठे हैं यदि आप भी अपना मत या विचार रखना चाहते हैं तो अपनी क़लम कि ताकत का उपयोग कीजिये!!!

Sunday, September 11, 2011

विकलांगता और समाज

अभी हाल ही में एक मित्र के ब्लॉग पर विकलांगता से जुड़े मुद्दे के बारे में पढ़ा था| वह उनके विवाह से सम्बंधित था| पोस्ट पढ़कर मन काफी आहात हुआ, लगा की जैसे यह समाज उनके प्रति कितना निष्ठुर हो गया है| हम सब राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय रूप से समाज के बारे में जब भी सोचते  हैं तो सामान्य दिखने वाले इंसान को ही नोर्मल या स्वस्थ व्यक्ति को ही उसका प्राथमिक हिस्सा मानते हैं| क्यूं??? ऐसा किसने कह दिया की यह दुनिया एक ही तरह के इंसानों के लिए बनी है, बाकी जो भी उस पारिभाषिक तरीके से व्यवहार नहीं करता वह सामान्य नहीं है? हम स्वास्थ (मानसिक और शारीरिक) को तो परिभाषित कर सकते हैं परन्तु सामान्यता या असामान्यता को ठोस रूप से नहीं|
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार "विकलांगता  एक अवारित शब्द है, जिसमें हम  impairments, गतिविधि की सीमाओं, और भागीदारी प्रतिबंध को पैमाने के रूप में रखते हैं| 
Impairments हमारे शारीरिक संरचना में सुचारू रूप से काम करने में समस्या है;  
गतिविधि की सीमा एक व्यक्ति द्वारा एक कार्य या क्रिया निष्पादित करने में कठिनाई का सामना है,
जबकि एक भागीदारी प्रतिबंध जीवन की परिस्थितियों में एक व्यक्ति द्वारा अनुभव की  समस्या है.
इस प्रकार विकलांगता एक जटिल कार्यप्रणाली  है, जो एक व्यक्ति के शरीर की विशेषताओं और समाज में  जीवन-यापन की क्रिया को दर्शाती है
अब आप खुद ही अनुमान लगा सकते हैं कि द so  called able / normal व्यक्ति अपने जीवन को अच्छे से, ख़ुशी-ख़ुशी बिता रहा है या Disable व्यक्ति| तो हमें विकलांग व्यक्तियों से विवाह के बारे में क्यों नहीं सोचना चाहिए, जबकि उनमें से अधिकतर लोग कई नोर्मल लोगों से अधिक खुश हैं, संतुष्ट हैं, रोज़गार अच्छा है, सरकारी नौकरियों में हैं, कोई ऐब नहीं है, सुन्दर हैं, लालची नहीं हैं, क्रोधी नहीं हैं, सकारात्मक सोच से कार्य करते हैं, समाज में बड़े से बड़ा योगदान करते हैं... और हम???
 एक जागरूक समाज का हिस्सा होने के नाते हम सब को समाज के विभिन्न वर्गों को समझना  और स्वीकार करना होगा| यह वर्गीकरण सभी को सामान रूप से लाभान्वित करने और उस से सम्बंधित कानून बनाने के लिए किया गया है| हमें इसे discrimination के लिए इस्तेमाल नहीं करना चाहिए|

 जब आम नागरिकों के रूप में, विकलांग लोगों के भी समान अधिकार हैं, तो उन्हें अपने दैनिक जीवन में समाज के प्रति  पूर्ण भागीदारी करने के लिएलगातार संघर्ष अपवर्जन और प्रतिबंध का सामना क्यों करना पद रहा है| हमें उनके प्रति  भेदभाव, दुरुपयोग, और गरीबी में सहायक होना चाहिए ना कि बाधक| मैं आप सब से विकलांगता कि विभिन्न प्रकारों और डिग्री के बारे मैं बात नहीं करूंगी, वह हम सब जानते हैं; नहीं स्वीकारते तो मानसिक और शारीरक स्वास्थ में अंतर को!!!
सामान्य दिखने वाले सभी जन निश्चित तौर से स्वास्थ हैं यह ज़रूरी नहीं है|
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार "एक सामान्य मनोस्थिति जिसमें व्यक्ति को अपनी क्षमताओं का अनुभव हो, वह जीवनयापन सामान्य तनाव के साथ भली भांति, सकारात्मक रूप से, उत्त्पदाकता के लिए कर सके| यदि वह समाज में सकारात्मक योगदान कर रहा है, तो वह मानसिक रूप से स्वस्थ है|"
अब आप ही बताईये हम सभी सामान्य दिखने वाले व्यक्तियों  में से कितने स्वास्थ हैं??? हम सभी किसी न किसी परेशानी से झूझ रहे हैं चाहे वह गुस्सा, भय, प्रतिशोध, द्वेष  हो या dipression. तो क्या हम सभी किसी न किसी डिग्री कि विकलांगता में नहीं आते /वर्गीकृत करते?
मैं इस विषय में और लिखना चाहती हूँ, आपका सहयोग और विचार आगे का भाग तय करेंगे!!!

Friday, September 9, 2011

गुलाबों सा वो चेहरा


खिड़की में उगता गुलाबों सा वो चेहरा,
आँखों से ज़हन  में उतरता किताबों सा वो चेहरा,
नूरे-ए-चश्म  है हिजाबों सा वो चेहरा,
मेरा कातिल, मेरा दुश्मन... बेदर्द है वो चेहरा!!!

रौनक-ए-इल्म सा पशेमा है वो चेहरा,
नर्गिस-ए- बाग सा संजीदा है वो चेहरा,
फितरत-ए-कैफ़ सा दीवाना है वो चेहरा,
मेरे दिल-ए-गुलज़ार का अफसाना है वो चेहरा!

खिड़की में उगता गुलाबों सा वो चेहरा...

Tuesday, July 12, 2011

कविता कोश: भारतीय काव्य में जुड़ता नया आयाम

यह नाम हिंदी पाठकों  और साहित्य प्रेमियों के लिए नया नहीं है| यह इंटरनेट पर क्रांतिकारी रूप से उभरती हुई, स्वयंसेवी परियोजना है, जिसका उद्देश्य विश्व के अमूल्य काव्य साहित्य को संग्रहित करना, उसे जन-जन तक पहुँचाना और हिंदी साहित्य को इंटरनेट पर समुचित स्थान दिलाना है| इस वेबसाइट में न सिर्फ हिंदी काव्य अपितु उर्दू, प्रादेशिक भाषायें, विदेशी भाषायें, लोक-गीत, धार्मिक-लोक रचनायें एवं शाशवत काव्यों  के अनुवाद भी शामिल हैं| अब तो ऑडियो-वीडियो विभाग ने इसमें चार-चाँद लगा दिए हैं| आप दुनिया भर की भारतीय श्रेष्ठ रचनाएँ किसी भी रूप में पा सकते हैं, सिर्फ एक लिंक, एक क्लिक और काव्य जगत आपका... आप चाहें तो इसमें योगदान कर कविता कोश का हिस्सा भी बन सकते हैं|
 
कविता कोश के संस्थापक ललित कुमार जी, पेशे से सॉफ्टवेर इंजिनियर व तकनीकी विशेषज्ञ हैं| उन्होंने संयुक राष्ट्र संघ के साथ कार्य करते हुए ५ जुलाई, २००६ को कविता कोश की नीव राखी थी| जीव-विज्ञान, सूचना प्रोद्योगिकी और बायो इन्फोमैटिकस जैसे तकनीकी विषयों में उच्च शिक्षा अर्जित करने के बाद भी उनकी हिन्दी साहित्य और काव्य में रूचि ने उन्हें इस परियोजना का निर्माण करने के लिए बाध्य किया| जी हाँ, बाध्य इसलिए कहूँगी क्यूंकि उन्होंने कविता कोश के निर्माण से पहले कई वेबसाइटस, ब्लोग्स, पुस्तकालय और दुकानों में श्रेष्ठ काव्य पढने के लिए मेहनत की| उनकी हार्दिक अभिलाषा थी कि कोई एक ही वेबसाइट हो जिसमें समस्त श्रेष्ठ रचनायें संग्रहित हों और जब उन्हें यह नहीं मिला तो एक क्रन्तिकारी विचार कि:
जिसका अस्तित्व न हो उसे स्वयं ही अस्तित्व में लाना पड़ता है!
ही कविता कोश कि आधारशिला बना| ललितजी का वेब इंजिनियर होना कविता कोश कि स्थापना, प्रगति और तकनीकी श्रेष्ठता का स्त्रोत है|
 
ललित कुमार
ललित जी से मेरी पहचान आज से दो वर्ष पहले, हमारे ऑफिस में ही हुई थी| इसे में अपना सौभाग्य ही मानूंगी कि मुझे उनकी तकनीकी मार्ग्दार्शिता हमारे प्रोजेक्ट के लिए मिली| व्यक्तिगत रूप से वह काफी सुलझे हुए, सरल और सादे इंसान हैं| सकारात्मक सोच, मज़बूत इरादे और कड़ी मेहनत उनके तेज का परिचायक है| कम शब्दों में कहूं तो वह बरसने वाले बदल हैं, जो ढेर सारा ज्ञान जल; अपने आप में समाहित करते हैं और बंजर भूमि ढूँढ कर, उसे तृप्त करते हैं| उनकी ज्ञान वर्षा अब सुदृढ़ परियोजना का रूप ले चुकी है| अभी कुछ ही दिन पहले उनसे मुलाकात हुई तो उनका उपहार देख कर मेरी ख़ुशी का ठिकाना न रहा| उन्होंने मुझे कविता कोश परियोजना कि पुस्तक हस्ताक्षर सहित भेंट कि| कविता कोश वेबसाइट से तो मैं पहले ही प्रभावित हो चुकी हूँ लेकिन आज मैं आपको कविता कोश कि पुस्तक के बारे में बताना चाहती हूँ|
 
कविता कोश के संदर्भ में संस्मरणात्मक और निर्देशिका के रूप में यह पुस्तक ललितजी द्वारा लिखित उनके प्रयासों का उद्दगार है| कविता कोश प्रकाशन कि इस पुस्तक का प्रयोजन Sarai/FLOSSinclude  ने किया है| परिकल्पना और प्रस्तुति ललित कुमार (कविता कोश) और रविकांत (सराय) कि है| यह कविता कोश कि तरह ही रुचिकर, सुन्दर, सुवय्वस्थित और जानकारी का भंडार है| इसका मुख्य उद्देश्य कविता कोश के संघर्ष, समस्यां व उनके समाधान, विकास, विभिन्न विभागों, योगदान करता व योगदान कि विधि, आंकड़े, भविष्य का प्रारूप और कविता कोश कि विभिन्न कड़ियों के बारे में सविस्तार बताना है|
 
मेरे पसंदीदा सेक्शन कविता कोश का विकास, इंटरनेट पर हिन्दी और शाशवत काव्य हैं| सच कहों तो यह पुस्तक पढने से पहले मुझे एक परियोजना के प्रारूप और उसके विकास के  बारे में कोई भी ज्ञान नहीं था| इस पुस्तक कि सरल भाषा और सूचीबद्ध तरीके से लेखन क कारण ही मुझमें यह जागरूकता आई है| विज्ञान और सूचना प्रोद्योगिकी जैसे विषयों में शिक्षा और पेशे कि वजह से मेरी अधिकतम रूचि विकिया के माध्यम से कविता कोश का गठन और विकास के दौरान आयी समस्याओं वाले अध्याय में है| यह विषय ललितजी के पूरे संघर्ष और समाधानों का निचोड़ हैं|
 
मुझे इस पुस्तक द्वारा कविता कोश वेबसाइट के वह मुख्य लाभ और आकर्षण पता चले जो हजारों बार साईट देखने के बाद भी कभी ज़हन में नहीं आये, जैसे :
  • रचनाकार, पाठक और योगदान-कर्ता का सामान रूप से लाभ  
  • हिन्दी काव्य, उर्दू, व प्रादेशिक भाषाओँ  सहित विदेशी भाषाओँ का काव्य संगह
  • मिडियाविकी प्लेटफार्म पर आधारित वेबसाइट
  • यूनिकोड आधारित
  • तकनीकी रूप से सुध्रिड
  • ऑडियो व वीडियो विभाग
  • स्वयसेवी एव मुक्क्त परियोजना
यह पुस्तक कविता कोश परियोजना का सविस्तार परिचय और उसका दर्पण है| इसमें पाठकों  कि जागरूकता देखते हुए उनके सभी प्रश्नों के उत्तर और कविता कोश में योगदान के तरीके को संतोष-जनक रूप में बताया गया है| इस पुस्तक कि सबसे अनूठी बात मुझे यह लगी कि कविता कोश परियोजना कि स्थापना के पांच वर्ष बाद भी पाठक अपने आप को इसके सफ़र और संघर्ष का हिस्सा महसूस करते हैं और जो इससे अब तक नहीं जुड़ पाए वह सप्रेम कविता कोश में योगदान कि इच्छा रखते हैं|
 
५ जुलाई, २०११ को कविता कोश ने सफलता के ५ वर्ष पूरे करलिये हैं| मैं अभिलाषा करती हूँ कि भविष्य का कविता कोशऔर भी सुध्रिड एवं उपयोगी बने| कविता कोश टीम सहित ललितजी को इस क्रांतिकारी परियोजना के लिए हार्दिक बधाई!!!
 
इस संग्रहणीय पुस्तक को जानने के लिए आप कविता कोश प्रकाशन में संपर्क करसकते हैं|

Thursday, June 23, 2011

प्रिय पाठकों

प्रिय पाठकों,
आप सब परेशान हो रहे होंगे की मैं कहाँ व्यस्त हूँ इनदिनों,काफी प्रियजनों ने अनुमान भी लगा लिया होगा... माता जी का स्वर्गवास हो गया है! पिछले महीने १९ मई को उनका जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष समाप्त हुआ, और जीत उनकी ही हुई!!! आप सब सोच रहे होंगे कि जीवन स्वरुप धूप पर मृत्यु का कफ़न पड़ने के बाद भी कोई कैसे जीत सकता है| जैसा कि मैंने अपनी पोस्ट डर के आगे जीत है!!!    मैंने उल्लेख किया था, उनका संघर्ष अपने सारे फ़र्ज़ पूरे करने का था| यूं तो हमसभी को कभी न कभी जाना ही है, परन्तु बहुत से लोग इस जीवन को व्यर्थ नहीं जाने देते, हमेशा कुछ न कुछ योगदान समाज में देते रहते हैं या फिर यथासंभव प्रयास करते रहते हैं|  माँ के साथ यह सब और भी मुश्किल था चूँकि वह "सिंगल मदर" थीं|

हे भगवान! पहली बार उन्हें "थीं" लिखा मैंने...
सच में, सच को सुनना और सच को मान लेने में बहुत फर्क है| एक महीने से ज़यादा हो गया है उन्हें गए, लेकिन आज तक उनकी मौजूदगी का एहसास हमेशा रहता है| सफ़र करते वक़्त, खाते पीते, लिखते, फोन पर बात करते वक़्त, सुबह दिन शुरू करने से पहले और अक्सर सोने से पहले उनकी हर एक हरक़त, हरेक भाव, हरेक स्पर्श ज़ेहन में घूमता रहता है| पता नहीं क्यों रोना नहीं आता बस उन्हें याद करना और करते रहना अच्छा लगता है, फिर जब महसूस होने लगता है की अब उनतक पहुँच नहीं सकती तो आँखे नम हो आती हैं| पता है, उन्होंने ही मुझे प्रकति और विज्ञान को जोड़ना सिखाया था| हर एक चीज़ में वह तर्क ढूँढती थीं| ज्ञान की बहुत चाह थी उनमें, हमेशा खाना खाते वक़्त अखबार का कोई टुकड़ा या पत्रिका, या फिर कुछ भी नामिले तो हम लोगों की ही कोई पाठ्य पुस्तक उठा कर पढ़ती रहती थीं| कोई भी कागज़ उनके हाथ के नीचे से बिना पढ़े नहीं जाता था| गीतों का कोई  शौक नहीं था उन्हें पर फिल्में अक्सर पसंद करती थीं, शायद वह फिल्में उन्हें पिताजी के साथ बिताये कुछ लम्हे याद दिला देती थीं|

बहुत सादी थीं मेरी माँ, बिलकुल तस्वीरों जैसी थी, सुन्दर नाक-नक्श, लम्बा कद, कमर से नीचे काले-घने लम्बे बाल,  सुघड़, मुस्कान तो उनकी सबसे-सबसे-सबसे अच्छी थी| आंखें थोड़ी  छोटी थीं पर उनकी चमक उनके ढ़ेर सारे संस्कारों और मज़बूत व्यक्तिव  का परिचायक थी| बड़ी लाल बिंदी उनके व्यक्तिव को और निखार देती थी| बहुत सुन्दर, बिलकुल भारतीय नारी सी गरिमा थी उनकी| साड़ी बहुत भाती थी उन्हें पर पिताजी के बाद काफी कम करदिया था साड़ी पहनना उन्होंने| आधुनिता और भारतीयता का अच्छा संगम था उनके वक्तित्व में, आफ़िस में हमेशा नया सीखने की ललक थी उन्हें और लंच टाइम में वह और उनकी सह्कर्मियाँ एक दुसरे को भजन लिखवाती थीं| ऐसा कोई व्रत नहीं था जो उन्होंने न किया हो, और पूजा अर्चना में सदैव नियम रखती थीं, यहाँ तक की अपने निधन से कुछ दिन पहले जबतक वह चल फिर रही थीं, वह पुरानी दिल्ली, अपने गुरु महाराज की राम नवमी की संगत में भी हमसे लड़कर गयी थीं|
हर काम भगवान को समर्पित करदेना और हर काम उनके लिए करना उनके संस्कारों में से एक था| भोजन को सदैव प्रसाद समझ कर बनाना चाहिए और पहले निवाले से पहले भगवान् को "रोटी" के लिए आभार व्यक्त करना चाहिए मैंने उन्ही से सीखा है| हर माँ की तरह वह भी अपने दुःख बहुत कम बांटती थी, और ज़रुरत से ज्यादा प्यार देती थीं| अभी तक तो उनके लिए लिखने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी और अब जब कहना शुरू किया है तो शब्द कम पड़ रहे हैं| देखिये ना, जो बात कह रही थी उसे छोड़ कर कहाँ तक आ गयी हूँ| लेखन भी भूल गयी हूँ शायद अब...

माँ की जीत इसलिए कह रही थी चूँकि उन्होंने अपने संघर्ष, बलिदान, त्याग, आशीर्वाद और ढ़ेर सारे प्रेम से पिताजी जी को दिया अपना आखरी फ़र्ज़ भी पूरा किया|
जी हाँ, आप सब की शुभकामनाओं और सप्रेम आशीर्वाद से हमने भाई की शादी करवा दी थी| उनकी मृत्यु से तीन दिन पहले ही विवाह संपन्न हुआ| वह विवाह में भाग तो नहीं ले पायीं परन्तु वरवधू को आशीर्वाद उन्होंने ICU में ही दिया था| इसबात की हमारे पूरे परिवार को तसल्ली है की शरीर त्यागने से पहले वह पूरी तरह से निश्चिन्त थीं|

मैं आपसब सहभागियों का आभार व्यक्त करती हूँ, जिन्होंने ब्लॉग जगत का हिस्सा होने के नाते मुझे और मेरे परिवार को कैंसर से संघर्ष के दिनों में हौसला बढाया| मन से निकली हर दुआ में ताक़त होती है, आप सबका प्यार इस बात का सबूत है| माँ की अंतिम  इच्छा को पूर्ण करवाने के लिए आपने जो शुभकामनायें, सहयोग और आशीर्वाद दिए, मैं उसके लिए नमन करती हूँ|

हार्दिक धन्यवाद!
कविता