मेरे एहसासों के पन्नों पर आज दूसरा रंग प्रेम और उसकी तड़प का है, मैं कवित्री तो नहीं हूँ परन्तु भावों को रंगों का जामा पहनाने का प्रयास किया है...
यह उनकी आखों में अपना अक्स जो नहीं देख सकतीं,
नाकाम हैं यह गुलाबी लब,
जो अपना निशाँ उनके लबों पर नहीं बना पाये,
यह सफ़ेद मुस्कराहट उदास है,
अगर उनके लौटते कदमों को रोक ना पाये,
तरसती हैं यह नारंगी हथेलियाँ उस नाम को,
देखो, हिना का रंग; बेरंग हो आया है,
पीली धूप सा उजाला मुजस्मा,
छाया ही है गर वो उनके आगोश में नहीं समा जाता ,
नीली-हरी रगों में सफ़र करता हुआ मेरा सुर्ख खून,
बहा दो गंगा में, गर वो उनके खून को पनाह ना दे सके!
4 comments:
बहुत खूब , यकीनन वह प्यारा खुशकिस्मत होगा जिसे ऐसा संग मिले ! शुभकामनायें !
हतेलियाँ की जगह हथेलियाँ होना चाहिए !
:)शुक्रिया सतीशजी, आप जैसे तजुर्बेकार मार्गदर्शकओं की सराहना महत्वपुर्ण है!
आभार!!!
बहुत रोचक और सुन्दर अंदाज में लिखी गई रचना .....आभार
एक मिजस्समः मुजस्सम हो गयी।
रंगों के साथ भावनाओं को व्यक्त करने का तरीका , कम-से-कम कथ्य में, अच्छा रहा। आभार ..!
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