साथियों, आज सुबह एक और घटना ने हतोत्साहित कर दिया उत्तर प्रदेश के लखीम पुर खेरी जिले में, निम्नवर्गीय ४५ वर्ष की महिला या और अच्छे से कहूं तो दलित महिला को चंद्वापुर गावं में नग्न करके घुमाया गया
राम प्यारी और उसके पति अपनी तलाकशुदा बेटी जयंती के साथ उत्तर प्रदेश में रहते थे जयंती अपने तलाक के दो वर्ष बाद मन्नू नाम के युवक के साथ, सामाजिक डर से भाग गई इस घटना पर गावं के एक "मान्य" दलित परिवार ने जयंती की माँ राम प्यारी को अगवा कर अपने घर रात भर प्रतिपादित किया और जब पूछने पर राम प्यारी ने कहा की उसे नहीं पता की उसकी बेटी कहाँ गयी है तो इस परिवार के मुखिया ने राम प्यारी को निवस्त्र कर पूरे गाँव में बेल्टों से मारते-मारते घुमाया ५०० की आबादी वाले इस गाँव में, एक की भी हिम्मत नहीं हुई की उस महिला को (जो की अधिकतर की माँ की उम्र की होंगी) सहायता कर प्रदान करसके या इस घटना का विरोध करे
हालाँकि SP अमित चन्द्रा ने इस घटना की पुष्टि की है और कहा है कि यह एक सोचा-समझा अपराध है, परन्तु प्रदेश कि पुलिस और उच्च ताकतें कितना सहयोग देती हैं यह देखना है मैं आपको बता दूं कि यह वही थाना है जहां कुछ ही दिन पहले एक युवती के साथ बलात्कार हुआ था और उसे जला कर मार देने कि कोशिश पुलिस ने ही कि थी अब आप अनुमान लगा ही सकते हैं कि राजनैतिक ताकतें/ या कोई भी और उच्च दबाव अपराधियों को किस सीमा तक सहयोग देती हैं, जो उनका मनोबल इतना अधिक है
इस घटना के कई सामाजिक पहलू हैं जिनके ख़िलाफ़ आम जनता को आवाज़ उठानी ही होगी, जैसे कि:-
क्या दलित होना आज भी अपराध है?
क्या सुखी ना रहने परभी एक महिला को यह अधिकार नहीं है कि वह तलाक ले?
क्या तलाक लेना किसी के लिए भी अपराध है, जबकि यह प्रावधान संविधानिक व न्यायिक रूप से अपने जीवन को बचाने और आत्मसम्मान से जीने के लिए है?
क्या तलाक जैसे मुद्दों में अपने बच्चों या परिवार का साथ देना ग़लत है?
क्या तलाक होने के बाद प्यार करना ग़लत है?
क्या एक तलाकशुदा महिला या पुरुष को सामजिक तौर से स्वीकार करना ग़लत है? जो उस युवक को अपना गाँव छोड़ कर भागना पड़ा
क्या बिना पुलिस और राजनैतिक सहयोग के इतने बड़े अपराध किये जा सकते हैं?
यदि हम अन्याय होता हुआ देखें तो कौन सी मजबूरी हमें उसका विरोध करने से रोकती है?
क्या हम सबका ज़मीर मर गया है?
अंतिम सवाल, क्या हम आज़ाद भारत के नागरिक है?
दोस्तों, मेरे ज़ेहन में इस घटना को लेकर उपरोक्त सवाल उठे हैं यदि आप भी अपना मत या विचार रखना चाहते हैं तो अपनी क़लम कि ताकत का उपयोग कीजिये!!!
7 comments:
ऐसी घटनायें किसी भी सभ्य समाज के माथे पर कलंक हैं। यदि हमारी पुलिस का चरित्र इतना खराब है तो उसके सुधार के लिये कड़े प्रयत्नों की आवश्यकता है
। सच्चरित्रता की नींव तो हमें ही डालनी है, सही ग़लत का भेज समझने का विवेक भी हो और सही के साथ खड़े होने का साहस भी, और यह सब करने के लिये इच्छाशक्ति भी आवश्यक है।
शुक्रिया अनुरागजी!!!
आपके मत और भाव समाज के नवनिर्माण में सहयोग देंगे| चरित्र सिर्फ पुलिस का ही उस घेरे में नहीं आता अपितु, राजनेता, सामाजिक पञ्च और हर वो व्यक्ति जो की इस तरह के अपराध को होने दे रहा है, इसमें किसी न किसी तबके का भागीदार है|
आभार...
इस सामाजिक अपराध के लिए पूरे का पूरा समाज ज़िम्मेदार है...हर आम इंसान ज़िम्मेदार है जो कमज़ोर चरित्र का मालिक है जिसके कारण ही समाज का ऐसा वीभत्स रूप देखने को मिलता है...अगर हम एक एक इकाई अपने चरित्र को मज़बूत बना लें तो समाज में आने वाली बुराइयों को आसानी से दूर कर सकेंगे...
IT IS THE REPUBLIC OF INDIA ...WHERE IS REPUBLIC
हमारे देश में जहाँ नारी का सम्मान होता हैं... वही कई सारी जगहों पर अन्याय भी बहुत होता है... आज भी कई विसंगतियां मौजूद है...
ऐसी घटनाएं बहुत शर्मनाक हैं...खास कर के पुलिस ने जो किया वो तो बेहद दुखद है..
नवरात्र के ४दिन की आपको बहुत बहुत सुभकामनाये माँ आपके सपनो को साकार करे
आप ने अपना कीमती वकत निकल के मेरे ब्लॉग पे आये इस के लिए तहे दिल से मैं आपका शुकर गुजर हु आपका बहुत बहुत धन्यवाद्
मेरी एक नई मेरा बचपन
कुछ अनकही बाते ? , व्यंग्य: मेरा बचपन:
http://vangaydinesh.blogspot.in/2012/03/blog-post_23.html
दिनेश पारीक
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