Thursday, March 31, 2011

रिश्ते



दोस्तों, हमारी ज़िन्दगी में हम कई रिश्तों को एक साथ जीते हैं... माँ और बेटी का रिश्ता, पिता और उनके ना होने पर भी उन्हें जीने का रिश्ता| दादी का दुलार, दादा की उँगलियों के बीच अपने आपको सबसे सुरक्षित महसूस करने का रिश्ता| चाचा और बुआ का मुझे गोद मैं उठाने के लिए अपने सब अज़ीज़ दोस्तों से झगड़ने का रिश्ता| चाची का कोमल स्नेह और फूफाजी जी के ढ़ेर सरे तोहफों के बीच अपने आप को अनमोल महसूस करने का रिश्ता| नानी के ढेर सरे पकवान और नाना जी के गणित में डूबे सवालों का रिश्ता| अपने तेराह भाईओं के बीच राजकुमारी सा महसूस करने का रिश्ता| अपने बहनों के बीच आदर्श व्यक्तित्व महसूस करने का रिश्ता| अपनी ज़िन्दगी के प्यार और उसे पाने का रिश्ता| शादी के अमिट बंधन में अपनी आत्मा को जोड़ने का रिश्ता... पर इन सभी रिश्तों को जीने के लिए हम सभी अपनी-अपनी इच्छायें और भावों को दफ़न कर देतें हैं, और फिर अपनी आत्मा से कहतें हैं...                       
                                         
ज़िन्दगी के तूफानों में, दफ़न हैं राज़ कई,            
कुछ तेरे- कुछ मेरे...                                                          
कामयाबी के रास्तों के हैं आगाज़ कई,
कुछ तेरे- कुछ मेरे...
रुसवाइओं  के पेड़ से झड़ने लगे हैं पत्ते कई,
कुछ तेरे- कुछ मेरे...
हवाओं में तैरते हैं, खुशबों के रंग कई,
कुछ तेरे- कुछ मेरे...
आसमान  चीर कर, यह ज़मीं  हुई है गीली... बिखरे हुए हैं अरमान कई,
कुछ तेरे- कुछ मेरे...


क्या वाकई में, हमारे लिए यह रिश्ते इतने लाज़मी हैं?
हाँ... यह सभी हमें इंसान बनाते हैं, ज़िन्दगी का एहसास करते हैं| कभी मीठी यादें बनाते हैं, कभी ज़हर के घूँट बन जाते हैं| रिश्ते ही हैं, जो ज़िन्दगी के पन्नों को पलटने के लिए हाथ बन जाते हैं, उस किताब में लिखा हुआ हर लफ्ज़ अपने ज़ेहन में उतरने के लिए आखें  भी दे जाते हैं| ज़िन्दगी को कभी महसूस किया है आपने... कैसे वोह हमारे जन्म के साथ ही पैदा होती है और कैसे मौत के सिरहाने बैठते ही, अपना आँचल समेटने लगती है|   इंसान गुनगुनाता हुआ, मुस्कुराता हुआ, आंखें पोंछ कर गा रहा है कुछ इस तरह...

होश न रहा, ढूँढता ही फिरा,
ऐ-ज़िन्दगी, तुझे पूजता ही रहा,
कतरा-कतरा बहती तू,
तुझे, तुझसे बटोरता ही रहा,
फूलों सी जन्मी थी तू,
मेरी आत्मा का बिम्ब लिए,
हर क्षण अपनी माँ की आँखों में,
तुझे देखता ही रहा...


रिश्ते, चाहे बने बनायें मिले हों, या हमारे अपने प्यार की सलोनी सौगात हों... हमेशा हमें जिंदा रहने का और इस खूबसूरत ज़िन्दगी को जी-भरके जीने का मार्ग दिखाते हैं| अपने रिश्तों हो सहेज कर रखिये दोस्तों, यह सभी अनमोल हैं...

22 comments:

Nirantar said...

रिश्ते तो रिश्ते होते

रिश्ते
बनाने से नहीं बनते
किस्मत से मिले रिश्ते
सदा दिल से नहीं जुड़ते
मजबूरी में ढ़ोने पड़ते
मन के रिश्ते खुद बनते
दिल में गुदगुदी करते
रिश्ते
निभाना आसान नहीं
रिश्तों में बहुत कुछ
सहना होता
दूसरे को समझना होता
सब्र रखना पड़ता
खुद से ज्यादा ख्याल
दूसरे का रखना होता
खुद रो कर दूसरे को
हंसाना पड़ता
दिल लुटा कर
चुप रहना पड़ता
रिश्ते तो रिश्ते होते
निरंतर
बनते बिगड़ते रहते
जिस के कम बिगड़े
उसे भाग्यशाली
कहते
31-03-03
563—233-03-11

Nirantar said...

nicely expressed

Patali-The-Village said...

वाह! बहुत बेहतरीन रचना| धन्यवाद|

Deepak Saini said...

जी हाँ सही कहा आपने रिश्ते अनमोल है
और हमारा ब्लागिंग का रिश्ता भी तेा
एक परिवार सा लगता है
बहुत बहुत शुभकामनाये

Kunwar Kusumesh said...

अनमोल रिश्ते.

Sunil Kumar said...

होश न रहा, ढूँढता ही फिरा,
ऐ-ज़िन्दगी, तुझे पूजता ही रहा,
कतरा-कतरा बहती तू,
तुझे, तुझसे बटोरता ही रहा,
कविता जी जिन्दगी खुद अपनी तलाश में तमाम हो जाती | खुबसूरत अहसास बधाई

Satish Saxena said...

हवाओं में तैरते हैं ....कृपया सुधार करें, इस खूबसूरत अहसासों वाली रचना में ...
आपकी रचनाओं में गहराई है कविता ! शुभकामनायें !

केवल राम said...

होश न रहा, ढूँढता ही फिरा,
ऐ-ज़िन्दगी, तुझे पूजता ही रहा,
कतरा-कतरा बहती तू,
तुझे, तुझसे बटोरता ही रहा,

पूरा जीवन दर्शन ही समाहित कर दिया आपने इन पंक्तियों में , रिश्तों के प्रति आपकी संवेदन शीलता का परिचय करवाती रचना सार्थक है ...आपका आभार

एक बेहद साधारण पाठक said...

हाँ गहरी सोच है .....


हम तो कहते हैं दोस्तों
जिंदगी से कहा जा रहा है .......गौर फरमाइयेगा

पहले से लिखा कुछ भी नहीं
रोज़ नया कुछ लिखती है तू
जो भी लिखा है दिल से जिया है
ये लम्हा फ़िलहाल जी लेने दे

फिल्म का गीत है .. मुझे आपके जैसा लिखना नहीं आता

G.N.SHAW said...

यह बस भारत में ही संभव है ! विश्व में कहीं नहीं मिलेगा !ये सभी सद्गुण के परिचायक है !बहुत ही सुन्दर लिखा है आप ने !"

ZEAL said...

बहुत सुन्दर लिखा है आपने ।
बधाई।

mridula pradhan said...

ज़िन्दगी के तूफानों में, दफ़न हैं राज़ कई,
कुछ तेरे- कुछ मेरे...
bahut achchi lagi....

केवल राम said...

आपका आभार ..मेरे ब्लॉग पर आकर उत्साहवर्धन के लिए ..आशा है आपका मार्गदर्शन यूँ ही अनवरत यूँ ही मिलता रहेगा

Amrendra Nath Tripathi said...

रिश्ते भी जड़ और चेतन दोनों के सापेक्ष देखे जाने चाहिये। दोनों की सीमाएँ हैं , शक्तियां है। परिवर्तनशीलता शाश्वत है। छूट जाने के बाद भी हम मूक स्थानों से रिश्ते महसूस करते हैं, वैसे ही अलग होने पर उन चेतन प्राणियों से भी।

आपकी अन्य पोस्टों को भी देखूँगा, अभी कुछ कारणों से व्यस्त हूँ। आपकी यह गद्य-पद्य मिश्रित शैली बढियाँ है। पुराने कुछ संस्कृत ग्रंथ इस शैली में हैं, जिसे “चंपू शैली” कहते हैं। आपने मेरे ब्लोग की कई प्रविष्टियों पर अपनी बात रखी, इसके लिये आभारी हूँ, अंतिम पोस्ट पर मैने आपके प्रश्न का दे उत्तर दिया है। सादर ..!

Patali-The-Village said...

नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनाएँ|

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम दो...

Vijuy Ronjan said...

RISHTE LAZIMI HAIN...UNKO BANAYE RAKHIYE..UNKI KHOOBSOORTI UNKO HALKE SE PAKAR RAKHNE MEIN HAI...JOR SE JAKARIYEGA TO TOOT JAYENGE...

Akshitaa (Pakhi) said...

कित्ती अच्छी सोच है...वाकई रिश्ते अनमोल है.

____________________
'पाखी की दुनिया' में भी आपका स्वागत है.

संजय भास्‍कर said...

आपका आभार ..मेरे ब्लॉग पर आकर उत्साहवर्धन के लिए ..आशा है आपका मार्गदर्शन यूँ ही अनवरत यूँ ही मिलता रहेगा

Amrendra Nath Tripathi said...

अपनी ही टीप पुनः पढ़ी मैने :)

सुन्दर लिखा है, आपने।

मीनाक्षी said...

रिश्तों के प्यारे ताने बाने चाहे वे खून के हो या मानवता के...जीने का पाठ पढ़ाते है....माँ पर लिखे एहसास दिल को छू गए....माँ कहाँ जा पाती है पराग बन कर अपनी खुशबू का एहसास देती है हर पल..

Kavita Prasad said...

माँ से जुड़े रिश्ते के लिए शब्द कम पड़ जाते हैं| क्या कहूं अपने मन द्रवित कर दिया मीनाक्षीजी|

शुक्रिया!