Thursday, March 17, 2011

बसंत उत्सव


बसंत उत्सव चल रहा  है और हम सभी अपनी-अपनी भावनाओं के द्वारा  पूरी तरह प्रकृति से, प्रकृति में, प्रकृति के लिए समर्पित हैं! कोई रंगों की बात कर रहा है, कोई त्योहारों की, कोई कविता, गीत-संगीत और भावों  की बात कर रहा है, कोई त्रासदी के अनुभव सुना रहा है तो  कोई सामाजिक मूल्यों और उनके हम पर प्रभाव की; पर जरा सोचिये इन सब अभिव्यक्तिओं  में क्या एक चीज़ उजागर हो रही है?
जी हाँ, वह प्रकृति है! आज हम सिर्फ हरियाली और जीव जंतुओं के बारे में बात नहीं करेंगे... आपका सहयोग रहा तो आज चर्चा करते हैं हमारे  मन या फिर यों कहिये कि प्रकृति कि सबसे छोटी इकाईओं में से एक कम्पन या vibration और उससे हमारे रिश्ते की! (दो अणुओं का परस्पर मिलन, कम्पन पैदा करता है और दो कम्पन परस्पर मिल कर गति बनाते हैं, ध्वनी और प्रकाश दोनों को गति के लिए माध्यम चाहिए होता है)
मन इसलिए कहा क्योंकि यह सारा खेल एहसासों का है! हमें जब भी कोई कहता है की महसूस करो... तो हम झट से आंखें बंद करलेते हैं और तरह-तरह के स्पंदन या कम्पन को पहचानने की कोशिश करते हैं! दरअसल प्रकृति एक एसा सच है जो हर वक़्त हमारे साथ रहता है परन्तु हमारे ही पास ही समय थोडा कम होता है उसे अनुभव करने का! हमारे  आस-पास कई प्रकार के अदृश्य बल इन सब कम्पनों या यों कहिये की जीवन शक्ति को चलते हैं, हम सभी के लिए आँखों देखा और कानों सुना अनुभव ही ज्यादा सच होता है... परन्तु आंखें बंद कर के महसूस किया प्रकृति का स्पर्श ज्यादा बेहतर मार्गदर्शक होता है; चाहे वोह जानवरों  द्वारा मुह उठाकर, आंखें बंद कर बारिश के आने का अनुमान हो या फिर किसीभी प्रकृति तरल-कुम्भ में भूकंप के आने की चेतावनी!
चलिए समझने की कोशिश करते हैं की कैसे कम्पन, ध्वनी और तरंगे हमारे मन-मस्तिष पर प्रबाव डालती हैं! हमारा प्रभामंडल, सबसे पहले प्रभावित होने और करने की क्षमता रखता है, जिसे हम अपने विचारों, शब्दों, तरंगों, आवाज़, आपकी मुस्कराहट और सबसे बड़ी बात अपनी प्रतिक्रिया से बनाते हैं! यदि  हमारी आवाज़ में मीठा-पन है, आखों में स्नेह है और चेहरे पर मुस्कान तो स्वतः ही सुनने वाले के मस्तिक्ष में हम घर कर लेते हैं! हमारा हर कण- सारी कोशिकायें, तंतु, डीएनए, हर जीन अपनी ही सिमित धुन में हिलोरे भरता है! यहाँ तक की हमारा कोशिका तंत्र भी सुरों में बातें करता और सन्देश भेजता है! किसी भी जंतु को हमारा प्रेमपूर्ण स्पर्श शांत कर देता है, अच्छे स्वरों को सुनकर मन प्रसन्न हो जाता है (फिर तो जी आप जो चाहे मनवा लीजिये पतिदेव से). कुल मिला कर कहें तो अच्छे और प्रेमपूर्ण  भाव हमारी शारीरिक उर्जाओं को जागृत कर, हमारे  हर काम को सकारात्मक सोच  और दिशा की ओर अग्रसर करते हैं!
आधुनिक विज्ञानं हो या प्राचीन अंतर्ज्ञान, दोनों ही इस बात पर एकमत होते हैं की ब्रह्मांडीय संवाद (cosmic dialogue ) कम्पन की भाषा से ही होते हैं! हम चाहे ओहम, नम मयो हो रेंगे क्यो, या अल्लाह उच्चरित करें या फिर कोई घंटी/वाधयंत्र बजायें यही माध्यम बनता है उस शक्ति पुंज तक पहुचने का ( भीतर और बाहर, चहुँ ओर). हमारा अपने पारिस्थितिकी तंत्र (ecosystem ) से भी संवाद इन्ही नन्हे जादूगरों कम्पन के कणों द्वारा ही होता है... पत्तों की सरसराहट, बारिश की रिमझिम, गीली मिटटी की खुशबु, तोफानों की गरज, माँ की लोरी, पिता का स्पर्श, बहन की मुस्कान, दोस्तों  के ठहाके, सचिन की सेंचुरी, नदी की कलकल, केसरी की दहाड़... J.C.Bose ने भी अपने ध्वनी और तरंगो पर काफी परिणाम दिए हैं! कितना कहूं सब कम है प्रकृति के समक्ष!
तो तो तो सार यह है की हम सभी की प्रकृति का सम्मान करते हुए, सकारात्मक सोच के साथ हर क्षण यह सोचना चाहिए की हम अपने पर्यावरण को कम्पन के खेल में क्या प्रदान कर रहें हैं! यकीन मानिये आप सब प्रकृति की ज़रूरत हैं...

13 comments:

Satish Saxena said...

लगता है आपका ब्लाग किसी अग्रीगेटर से सम्बंधित नहीं है , इसके अभाव में आपके बेहतरीन लेख को पाठक नहीं मिल पाएंगे !

मेरी सलाह है कि आप हमारीवाणी तथा इन्डली में रजिस्टर अवश्य करा लें ! इसके बाद जब भी पोस्ट लिखें हमारी वाणी के लोगो को क्लिक करना होगा तथा हर पोस्ट को इन्डली पर फ्रेश पोस्ट के रूप में दर्ज करना न भूले ! इन दोनों के एड्रेस आपको मेरे ब्लॉग पर मिल जायेंगे !
सादर

कृपया वर्ड वेरिफिकेशन को तुरंत हटा दें इसका कोई उपयोग नहीं है बल्कि कमेन्ट में एक बड़ी बाधा उत्पन्न करता है !

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

आदरणीया कविता प्रसाद जी
सादर सस्नेहाभिवादन !

विद्वता से लबालब आलेख बसंत उत्सव पढ़ कर मन आनन्दनिमग्न हो गया …
आपकी शेष पोस्ट्स होली के हंगामे से उबर कर अवश्य पढ़ूंगा …

तब तक स्वीकार करें हार्दिक बधाई !

साथ ही
♥ होली की शुभकामनाएं ! मंगलकामनाएं !♥

होली ऐसी खेलिए , प्रेम का हो विस्तार !
मरुथल मन में बह उठे शीतल जल की धार !!


- राजेन्द्र स्वर्णकार

rajesh singh kshatri said...

आपको एवं आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें!

Patali-The-Village said...

होली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ|

Kavita Prasad said...

आपकी मूल्यवान सलाह के लिए धन्यवाद सतीशजी, मैंने अपने ब्लॉग पर बदलाव करलिये हैं!
राजेन्द्रजी आपको पोस्ट पसंद आयी, जानकर आचा लगा! आपके आदर और विचारों के लिए शुक्रिया!
राजेशजी, ज़ाकिरजी, और पातली आप सभी को होली, बसंत और नववर्ष की शुभकामनायें!!!

आप सब का आभार...
कविता

Udan Tashtari said...

होली की हार्दिक शुभकामनायें....

ZEAL said...

सकारात्मक सोच के परिणामस्वरूप ही हमसे सकारात्मक कृत्य होते हैं , जो निसंदेह प्रकृति में एक साकारात्मक ऊर्जा के रूप में संचित होते रहते हैं।

मुकेश कुमार सिन्हा said...

nisandeh aapki sakaratmak soch hame bhi achchhi lagi...:)..

Nirantar said...

My Solution to your querry
जानता हूँ क्या करना मुझे
अच्छा बुरा सब पता मुझे
व्यस्तता में कर नहीं प़ता
निरंतर सोचता,कल से करूंगा
जुबान से कल भी बदल जाऊंगा
मगर फितरत अपनी नहीं बदलूंगा
जज्बा भी वही रखूंगा
भूल जाता ,नतीजा भी वही होगा
कल भी रोता था कल भी रोऊँगा
अब ठान लिया,जज्बा बदलना है
कल नहीं आज से प्रारम्भ करना है
आज से हसूंगा
कल का इंतज़ार फिर ना करूंगा
can I have your mailid?If u do not mind

हरीश सिंह said...

आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा , आप हमारे ब्लॉग पर भी आयें. यदि हमारा प्रयास आपको पसंद आये तो "फालोवर" बनकर हमारा उत्साहवर्धन अवश्य करें. साथ ही अपने अमूल्य सुझावों से हमें अवगत भी कराएँ, ताकि इस मंच को हम नयी दिशा दे सकें. धन्यवाद . आपकी प्रतीक्षा में ....
भारतीय ब्लॉग लेखक मंच
डंके की चोट पर

Amrendra Nath Tripathi said...

@ अच्छे स्वरों को सुनकर मन प्रसन्न हो जाता है (फिर तो जी आप जो चाहे मनवा लीजिये पतिदेव से). ...
-- नाद रीझि तन देत मृग , नर धन हेत समेत। ( ~ रहीम )
इसलिये सुरों की महिमा वशीकरण-वत है!

@ ब्रह्मांडीय संवाद (cosmic dialogue ) कम्पन की भाषा से ही होते हैं!
-- संस्कृत में कहा गया है: “ शब्दगुणमाकाशम्‌ ” !

@ ...... हम अपने पर्यावरण को कम्पन के खेल में क्या प्रदान कर रहें हैं! हम अपने पर्यावरण को कम्पन के खेल में क्या प्रदान कर रहें हैं!
-- सब अपने अपने ढ़ंग से करते ही रहते हैं, क्योंकि सब तो श्वास-प्रश्वासी हैं जो !
हम जैसे कुछ झगड़ा-झंझट - तज्जन्य स्वर - से भी यह काम किया करते हैं :)

तह चिंतन परक पोस्ट अच्छी लगी! आभार..!

मीनाक्षी said...

यहाँ पहली पोस्ट 'कामायनी' के शीर्षक से लगा था कि प्रकृति से प्रेम होगा...इस पोस्ट को पढ़ कर यकीन हो गया...क्योंकि प्रकृति से प्रेम हो तो मानव से स्वत: प्रेम हो ही जाता है...ऐसे लोग ही मानवता का फूल खिला पाते हैं...ढेरों शुभकामनाएँ

Kavita Prasad said...

मीनाक्षीजी प्रकृति से तो हम सभी जुड़े होते हैं बस उसे महसूस करने के लिए वक्त नहीं निकाल पाते :]

आपने मेरी भावनाओं को समझा इसके लिए आभारी हूँ|