Monday, March 7, 2011

कामायनी

मुझसे अक्क्सर मेरे अज़ीज़ कहते हैं की हमें अपने उड़ते हुए एहसासों को पन्नों पर उतार लेना चाहिए, लेकिन कभी लगा ही नहीं की हिंदी पर मेरी पकड़ इतनी है की एक ब्लॉग शुरू कर सकूँ, सिर्फ अपने एहसासों  को व्यक्त  करना जानती हूँ!
आज इस ब्लॉग को बनाने का कारण भी मेरे उलझे हुए एहसास हैं! कुछ प्यार से भरी यादें हैं और कुछ विरह की कराहें हैं! कुछ आने वाले कल के सपने हैं, तो कुछ आरती की घंटियों से बंधी दुआयें... कल मेरी अज़ीज़ बहिन, और उससे भी ज़यादा करीब दोस्त कामायनी, ग्रहस्त जीवन में प्रवेश कर चकी है!
यह पोस्ट उसी से जुड़े अरमानों और कभी न टूटने वाले धागों की झलक है!
सबसे पहले उसकी बिदाई का ही मंज़र सामने आ रहा है, तो उसी परेशान, फिक्रमंद, उदास, लाचार, समझदार और गोल-भूरी आँखों के नाम ही मेरा पहला पैग़ाम...



नहीं है वक़्त इन उदास आखों के लिए गुड़िया,
इन आखों में पिया के रंग भर ले,
सजा दे अपने आसमान को नयी अज़ानों से,
दुआ मांगो की... रवि सा रौशन तेरा यह नया रिश्ता सुनहरा हो,
तू महकाए अपने घर-आंगन को गुलाबों सा,
हर रात दिवाली पूजे तू, और हरे दिन होली का पर्व ये तेरा हो,
अपने कुल-वृक्ष को दे तू, नयी कोपलों का उपहार,
हर शाख़ पर, स्वाथ्य हर पत्तों और सुन्दर फलों का बसेरा हो!
नहीं है वक़्त इन उदास आखों के लिए गुड़िया...

वह सबसे गले मिलती हुई, कभी रोती हुई तो कभी आसूं पोंछती हुई बढ़ रही थी, अपनी नयी मंजिल और पुराने रिश्तों को आँचल में समेटती हुई... कतरा- कतरा बिखरती हुई, तो कभी अपने आप को संभालती हुई चली जा रही थ! मैं, ना जाने किस अनजान डर से, उससे नजरें चुरा रही थी, डर था की कहीं उसके साथ रोते-रोते बह ना जाऊं, फिर कभी लगता था की हमेशा उसे संबल देने वाली बड़ी दीदी कहीं, कमज़ोर ना साबित हो जाये. इस लिए कभी बाउजी के साथ किताबें लिए तो कभी छोटी बहनों को संभालते और बहलाते हुए अपने आप से छिप रही थी! मेरी कनु मुझसे बिना बिदा लिए ही चली गयी... हमेशा की तराह उसे लगा होगा की दीदी बहुत मज़बूत है, अपने साथ-साथ बाकि घर वालों का भी ख़याल रख लेंगी! कनु, तू समझ भी ना पाई की मैं तेरे बिना कितनी अकेली पड़ गयी हूँ, यह तक नहीं पता चला की कौन सा हिस्सा अलग हुआ है...
सिर्फ पाषण का सा एहसास होता है, जो हर काम कर तो रहा है, हंस भी रहा है पर धीरे-धीरे यादों की लकीरों से घिसता चला जा रहा है, मेरी गुडिया...

12 comments:

Satish Saxena said...


अपने परिजानों और प्यारो के लिए यह विदाई सबसे दारुण होती है ! एक मार्मिक क्षण पर यह रचना लिखी गयी थी शायद पसंद आएगी ! शुभकामनायें !!
कैसी रीति समाज की -सतीश सक्सेना

http://satish-saxena.blogspot.com/2010/12/blog-post_24.html ,

संजय भास्‍कर said...

अच्छी रचना...अंतिम पंक्तियाँ तो बहुत ही अच्छी लगीं.

Anonymous said...

आपकी गुडिया को सुखमय विवाहित जीवन की हार्दिक शुभकामनाएं "मार्मिक प्रस्तुति"

Nirantar said...

Very good wordings
and thoughts.Kindly change "कभी रोटी हुई टू कभी" "जनि किस" I hope you do not mind my suggestions.Probably because of translitter this has happened.Request you to correct translitter mistakes commited unwillingly
Regards and best wishes

Kavita Prasad said...

@ Rajendraji

Thank you so much sir!
Your kind efforts and sincere suggestion would surely guide me to improve further. (I don’t mind… ). Infract I’m glad that you’ve spend your valuable time to correct me :]

Regards!

Anonymous said...

jkkj

Kamayani said...

Alas, I have received the most precious gift of my wedding... This write up which has touched my soul... Nothing can ever be compared with this... I am touched with the genuineness and sensitivity that a person can ever have for another... My BEST FRIEND and SISTER Kavita Didi has made me feel my presence in this world... She has been with me in my ups and downs and has always believed in me... She is my strength... This is one relationship that I have achieved and feel proud about... Hats off to you, you have beautifully expressed your feeling.Just feel like thanking the Almighty for giving me YOU.

Pranita said...

I dont know if you do know me Kavita didi, might have heard my name from Kamayani:)
I have never read such beautiful lines before, coming straight from the heart. Blessed is Kamayani who has a friend like you. Kamayani deserve all the best things in life
Bless you both!!
Love
Pranita

Anonymous said...

Pranita, Kavita didi knows you really well... and you are right I have got best things like you both in my life.

Kamayani

Amrendra Nath Tripathi said...

@ ग्रहस्त जीवन में प्रवेश कर चकी है
- गृहस्थ होता है , सादर सुधारार्थ !

आपकी अन्य पोस्टें देखने के लिये सोचा था, देखिये कहाँतक पहुँचता हूँ!

इस तरह लिखते जाना सही है, ये पन्ने भी एलबम की फोटो की तरह होते हैं, कभी भी देखे-पढ़े जा सकते हैं। भाषा आदि के सुधार तो आते ही रहते हैं, धीरे-धीरे।

अंतिम अनुच्छेद मार्मिक है, दृश्य मूर्त करता हुआ। मुझे अपनी बहिनी की याद आ गयी। २००१ का समय। अश्रुपलक-अपलक!!

मीनाक्षी said...

'नारी' ब्लॉग की पोस्ट विकलांग से विवाह....पर आपकी टिप्पणी ने इतना प्रभावित किया कि यहाँ तक आ पहुँची...सुबह की पहली चाय के साथ बैठी हूँ आपके ब्लॉग को पढ़ने..नन्ही बहन को गृहस्थ जीवन की शुरुआत के लिए हमारा भी आशीर्वाद..

Kavita Prasad said...

मीनाक्षीजी,

आपकी हौसला अफजाई और शुभ कामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद! नारी पर मेरी प्रतिक्रिया मात्र उस पोस्ट तक ही नहीं है, मैं मन से आप सब से आवाहन करती हूँ कि उस विषय पर हम सब अपना सामाजिक नजरिया बदलें, और बाकी लोगों को भी प्रोत्साहित करें, मैं रचना जी कि आभारी हूँ कि उन्होंने इस विषय को मंच दिया|

धन्यवाद!