खिड़की में उगता गुलाबों सा वो चेहरा,
आँखों से ज़हन में उतरता किताबों सा वो चेहरा,
नूरे-ए-चश्म है हिजाबों सा वो चेहरा,
मेरा कातिल, मेरा दुश्मन... बेदर्द है वो चेहरा!!!
रौनक-ए-इल्म सा पशेमा है वो चेहरा,
नर्गिस-ए- बाग सा संजीदा है वो चेहरा,
फितरत-ए-कैफ़ सा दीवाना है वो चेहरा,
मेरे दिल-ए-गुलज़ार का अफसाना है वो चेहरा!
खिड़की में उगता गुलाबों सा वो चेहरा...
11 comments:
आपके उड़ते एहसासों की खुशबू ने माँ के एहसासों को एक चेहरा दे दिया कुछ इस तरह से ....
"मेरी आँखों में उगता गुलाबों सा वो चेहरा
दिल औ'दिमाग में खुशबू भरता गज़ब सा वो चेहरा
लम्हा लम्हा जीने की राह दिखाता वो चेहरा
सबसे अलग मेरे लख़्ते जिग़र का प्यारा वो चेहरा"
खूबसूरत है मीनाक्षीजी,
वोह चेहरा जो खुदा के नूर को भी बेमानी कर दे,
सैकड़ों अरमानो को चूम कर, मेरी पेशानी कर दे,
इस गम-ओ-ज़ुल्मत से निजात दिलाता हुआ,
अपने आँचल से मेरे चेहरे हो सहलाता हुआ वोह चेहरा ....
मेरी रूह में शिरकत करता हुआ गुलाबों सा वोह चेहरा...
जहाँ जाता हूँ, रहता साथ
है ,दिल में, वही चेहरा !
समय के साथ भी धूमिल
कहाँ होता, हसीं चेहरा !
रहे अरमान सब दिल में, भला अब कैसे बतलाएं !
मेरा कातिल, मेरा दुश्मन... बड़ा बेदर्द वो चेहरा!!!
बहुत सुन्दर ,गहन अभिव्यक्ति...
gahan abhivaykti....
फितरत-ए-कैफ़ सा दीवाना है वो चेहरा,
मेरे दिल-ए-गुलज़ार का अफसाना है वो चेहरा!
चेहरा आखिर चेहरा होता है ....कभी जिन्दगी तो कभी बंदगी ....आपने बहुत खूबसूरती से मन की भावनाओं को अभिव्यक्त किया है .......आपका आभार
अहसासों से निर्मित चेहरा है, मन के आदर्श से बना/बनाया गया। पर मजबूरी यानी यथार्थ का इतना आग्रह है कि उसे ‘कातिल/बेदर्द’ कहे बिना नहीं रहा गया। इससे यह भी निकलता है कि मन की दुनिया कितना भी स्वर्ण-कल्पना-प्रसाद बना ले लेकिन यथार्थ की तीखापन/कसैलापन अपनी उपस्थिति दर्ज किये बिना नहीं रहता। उर्दू के लफ्जों का सही रखाव है। उर्दू की सामासिक योजना में व्यवधान भी कम लगा मुझे, वैसे मेरी इस बात को गंभीरता से नहीं लेने लायक है क्योंकि मुझे उर्दू का ज्ञान नहीं है गहराई से।
एक सवाल अवश्य, क्या नर्गिस (बेशक बाग आ ही जायेगा) की खासियत उसकी ‘संजीदगी’ है? या कोई दूसरा विशेष गुण?
सादर..!
खिड़की में उगता गुलाबों सा वो चेहरा...
Aankho se jahan me utartaa kitaabo sa bo chahraaa . ..
Wah :)
बहुत बढ़िया...
वक़्त की मांग.....
भय को दूर भागने के लिए ज्ञान व विवेक की प्राप्ति ही एक मात्र उपाय है।- प्रवक्तानुसार
ईमानदार से बढ़कर कोई जज्बा नहीं।
वफादारी से बढ़कर कोई मोहब्बत नहीं।।
संतोष से बढ़कर कोई दौलत नहीं।
प्यार से बढ़कर कोई ताकत नहीं किसी दुश्मन से दूर जाना है तो पसंद करने लग जाएं..(Lesson from great thinker-लियो टॉल्सटॉय)
(1) अगर हर व्यक्ति अपने विश्वास की लड़ाई लड़ना शुरू कर देगा तो दुनिया में कभी कोई जंग नहीं होगी।
(2) जिन्दगी कभी रूकती नहीं है और आपको जीवन जीना ही पड़ता है।
(3) जब छोटे-छोटे बदलाव दिखने लगते हैं, तभी आप सच की जिंदगी जीने लगते हैं।
(4) किसी व्यक्ति को काम और प्यार करना आता है तो वह जिन्दगी को खूबसूरत अंदाज़ में लायक बना देगा।
(5) मनुष्य के दो सबसे ताक़तवर औजार हैं- धैर्य एवं समय। (प्रस्तुतीकरण- शशि कान्त राऊत) ।
इंसानियत से बढ़कर कोई जज्बा नहीं।
सेवक से बढ़कर कोई रुतबा नहीं।।
मित्रता से बढ़कर कोई नाता नहीं।
अहंकारी के मन कोई समाता नहीं।।
डर से बड़ा कोई रोग नहीं।
घमंड से बड़ा कोई शत्रु नहीं।।
पाप से बड़ा कोई कर्म नहीं।
दिल को दुखाता कोई धर्म नहीं।।
सबसे बड़ा धन है ज्ञान,
स्व आदर और आत्म-सम्मान।
मीठी बोली है जीवन की शान,
प्रेम व भाईचारा है वक़्त की मांग।।
(वक़्त की मांग से प्रस्तुतीकरण - शशि कान्त राऊत)
Post a Comment