साथियों, आज मैं आप के साथ गौतम के जीवन में घटित, अपनी सबसे पसंदीदा घटना बांटना चाहती हूँ| मैं गौतम बुद्ध को प्रायः गौतम या सिद्धार्थ कह कर ही संबोधित करती हूँ|
सदधर्म मार्ग की प्राप्ति के दूसरे ही दिन, गौतम ने गाँव के सारे बच्चों को मिलने बुलाया! सभी बच्चे तैयार हो कर, समय से ही पीपल के नीचे एकत्रित हो गए| सभी कुछ-न-कुछ खाद्य पदार्थ उपहार स्वरुप लाये थे! सुजाता नारियल और ताड़-गुड की बट्टियां, नन्द बाला और सुभाष टोकरी भर मिट्ठा, एक प्रकार का संतरे जैसा फल लाये थे| गौतम ने सभी उपहार सहर्ष स्वीकार करलिये और सभी बच्चों के साथ मिलकर खाने लगे| सुजाता ने बीच मैं ही उठ कर घोषणा की " आज हमारे गुरुदेव को सम्बोधि प्राप्त हो गयी है, उन्होंने सदधर्म का मार्ग खोज लिया है|" सभी बच्चों ने आदर और प्रेम पुर्वक नमन कर, सदधर्म की शिक्षा के लिए अनुरोध किया|
गौतम ने बड़े प्यार से बच्चों को बैठाया और कहा की सदधर्म का मार्ग बहुत गूढ़ और सूक्ष्म है, लेकिन जो भी इस ओर अपना चित्त लगाएगा वह इसे समझ सकताहै और इसपर चल सकता है| उन्होंने कहा " बच्चों जब तुम मिट्ठा छील कर खाते हो तो सचेत अवस्था के साथ भी खा खसकते हो और बिना जागरूक रहे भी| सचेत हो कर मिट्ठा खाने का अर्थ है कि, जब तुम इसे खाओ तो भली भांति समझो और महसूस करो कि तुम क्या खा रहे हो| उसकी गंध और स्वाद को पूरी तरह आत्मसात कर लो| उसका छिलका उतारो तो तुम्हारा पूरा ध्यान छिलका उतरने में हो और जब एक-एक फांक खाओ तब उसके रंग, गंध और मिठास तो पूरी तरह अनुभव करो, उसके पीछे के जीवन का अनुमान लगाओ| मैंने इसकी हर फांक को पुर्ण जागरूकता के साथ खाया है और पाया है कि यह कितनी मूल्यवान तथा अदभुत वस्तु है| यह मिट्ठा मेरे लिए एक निश्चित सत्य बनगया है, मैं इसे आजीवन नहीं भूल सकता| सचेत हो कर मिट्ठा खाने का यही अर्थ है|"
दोस्तों, सचेत अवस्था में जीवन यापन करने का अर्थ ही है की "अपने चित्त और शरीर को एक साथ मिला कर वर्त्तमान में जिया जाये"| इसके विपरीत जीना, अचेत अवस्था में जीना है, जिसमें हम जानते नहीं की हमारे आस पास क्या और कैसे घट रहा है, कई बार हम अतीत और भविष्य में इतना खो जाते हैं की वर्त्तमान को नज़र अंदाज़ करदेते हैं| सचेतावस्था में जी कर ही हम अपने जीवन को मूल्यवान और अर्थपूर्ण बना सकते हैं|