Sunday, September 11, 2011

विकलांगता और समाज

अभी हाल ही में एक मित्र के ब्लॉग पर विकलांगता से जुड़े मुद्दे के बारे में पढ़ा था| वह उनके विवाह से सम्बंधित था| पोस्ट पढ़कर मन काफी आहात हुआ, लगा की जैसे यह समाज उनके प्रति कितना निष्ठुर हो गया है| हम सब राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय रूप से समाज के बारे में जब भी सोचते  हैं तो सामान्य दिखने वाले इंसान को ही नोर्मल या स्वस्थ व्यक्ति को ही उसका प्राथमिक हिस्सा मानते हैं| क्यूं??? ऐसा किसने कह दिया की यह दुनिया एक ही तरह के इंसानों के लिए बनी है, बाकी जो भी उस पारिभाषिक तरीके से व्यवहार नहीं करता वह सामान्य नहीं है? हम स्वास्थ (मानसिक और शारीरिक) को तो परिभाषित कर सकते हैं परन्तु सामान्यता या असामान्यता को ठोस रूप से नहीं|
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार "विकलांगता  एक अवारित शब्द है, जिसमें हम  impairments, गतिविधि की सीमाओं, और भागीदारी प्रतिबंध को पैमाने के रूप में रखते हैं| 
Impairments हमारे शारीरिक संरचना में सुचारू रूप से काम करने में समस्या है;  
गतिविधि की सीमा एक व्यक्ति द्वारा एक कार्य या क्रिया निष्पादित करने में कठिनाई का सामना है,
जबकि एक भागीदारी प्रतिबंध जीवन की परिस्थितियों में एक व्यक्ति द्वारा अनुभव की  समस्या है.
इस प्रकार विकलांगता एक जटिल कार्यप्रणाली  है, जो एक व्यक्ति के शरीर की विशेषताओं और समाज में  जीवन-यापन की क्रिया को दर्शाती है
अब आप खुद ही अनुमान लगा सकते हैं कि द so  called able / normal व्यक्ति अपने जीवन को अच्छे से, ख़ुशी-ख़ुशी बिता रहा है या Disable व्यक्ति| तो हमें विकलांग व्यक्तियों से विवाह के बारे में क्यों नहीं सोचना चाहिए, जबकि उनमें से अधिकतर लोग कई नोर्मल लोगों से अधिक खुश हैं, संतुष्ट हैं, रोज़गार अच्छा है, सरकारी नौकरियों में हैं, कोई ऐब नहीं है, सुन्दर हैं, लालची नहीं हैं, क्रोधी नहीं हैं, सकारात्मक सोच से कार्य करते हैं, समाज में बड़े से बड़ा योगदान करते हैं... और हम???
 एक जागरूक समाज का हिस्सा होने के नाते हम सब को समाज के विभिन्न वर्गों को समझना  और स्वीकार करना होगा| यह वर्गीकरण सभी को सामान रूप से लाभान्वित करने और उस से सम्बंधित कानून बनाने के लिए किया गया है| हमें इसे discrimination के लिए इस्तेमाल नहीं करना चाहिए|

 जब आम नागरिकों के रूप में, विकलांग लोगों के भी समान अधिकार हैं, तो उन्हें अपने दैनिक जीवन में समाज के प्रति  पूर्ण भागीदारी करने के लिएलगातार संघर्ष अपवर्जन और प्रतिबंध का सामना क्यों करना पद रहा है| हमें उनके प्रति  भेदभाव, दुरुपयोग, और गरीबी में सहायक होना चाहिए ना कि बाधक| मैं आप सब से विकलांगता कि विभिन्न प्रकारों और डिग्री के बारे मैं बात नहीं करूंगी, वह हम सब जानते हैं; नहीं स्वीकारते तो मानसिक और शारीरक स्वास्थ में अंतर को!!!
सामान्य दिखने वाले सभी जन निश्चित तौर से स्वास्थ हैं यह ज़रूरी नहीं है|
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार "एक सामान्य मनोस्थिति जिसमें व्यक्ति को अपनी क्षमताओं का अनुभव हो, वह जीवनयापन सामान्य तनाव के साथ भली भांति, सकारात्मक रूप से, उत्त्पदाकता के लिए कर सके| यदि वह समाज में सकारात्मक योगदान कर रहा है, तो वह मानसिक रूप से स्वस्थ है|"
अब आप ही बताईये हम सभी सामान्य दिखने वाले व्यक्तियों  में से कितने स्वास्थ हैं??? हम सभी किसी न किसी परेशानी से झूझ रहे हैं चाहे वह गुस्सा, भय, प्रतिशोध, द्वेष  हो या dipression. तो क्या हम सभी किसी न किसी डिग्री कि विकलांगता में नहीं आते /वर्गीकृत करते?
मैं इस विषय में और लिखना चाहती हूँ, आपका सहयोग और विचार आगे का भाग तय करेंगे!!!

Friday, September 9, 2011

गुलाबों सा वो चेहरा


खिड़की में उगता गुलाबों सा वो चेहरा,
आँखों से ज़हन  में उतरता किताबों सा वो चेहरा,
नूरे-ए-चश्म  है हिजाबों सा वो चेहरा,
मेरा कातिल, मेरा दुश्मन... बेदर्द है वो चेहरा!!!

रौनक-ए-इल्म सा पशेमा है वो चेहरा,
नर्गिस-ए- बाग सा संजीदा है वो चेहरा,
फितरत-ए-कैफ़ सा दीवाना है वो चेहरा,
मेरे दिल-ए-गुलज़ार का अफसाना है वो चेहरा!

खिड़की में उगता गुलाबों सा वो चेहरा...